लोगों की राय

विविध धर्म गुरु >> सिख गुरु गाथा

सिख गुरु गाथा

जगजीत सिंह

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3322
आईएसबीएन :81-88140-67-8

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

357 पाठक हैं

प्रस्तुत कृति सिख गुरु गाथा सिख गुरुओं के त्याग-तपस्यामय, बलिदानी, आदर्श व प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालती है...

Sikh Guru Gatha

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारत की सामाजिक एकता, उत्थान तथा राष्ट्रीय निर्माण में सिख गुरुओं का अमूल्य योगदान रहा है। प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव से लेकर दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह तक सभी दस गुरुओं का जीवनकाल कुल 239 वर्षों का रहा। इस दौरान सिख गुरुओं ने पंजाब तथा पंजाब से बाहर व्यापर भ्रमण किया और अपने उपदेश तथा व्यावहारिक जीवन द्वारा समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाकर उसकी दशा और दिशा ही बदल दी। आधुनिक युग का कोई भी ऐसा ज्वलंत मुद्दा नहीं, जिस पर सिख गुरुओं ने मानवमात्र को संदेश अथवा उपदेश न दिया हो। पंजाब में नए शहरों तथा जलस्त्रोतों आदि का निर्माण करके गुरुओं ने धर्म को विकास के साथ जोड़ा। राष्ट्र के गौरव और धर्म की रक्षा का प्रश्न आया तो छठे एवं दशवें गुरुओं ने न केवल शस्त्र धारण किए और अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़े बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे।

प्रस्तुत कृति ‘सिख गुरु गाथा’ सिख गुरुओं के त्याग-तपस्यामय, बलिदानी, आदर्श व प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालने के साथ उनका संपूर्ण जीवन-वृत्त प्रस्तुत करती है।

 पुस्तक में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द


उदासी  : धार्मिक प्रचार के लिए की गई यात्रा।
सचखंड : प्रभु का दरबार।
मंजी    : धर्म के प्रचार की पीठ या केन्द्र।
पउड़ी    : शबद-रूपी सीढ़ी जिस पर चढ़कर साधक
         ज्ञानलोक तथा सचखंड तक पहुँचता है।
गुरु  के महल : गुरु साहिबान की परम श्रद्धेय धर्मपत्नी।
सिरोपाउ : सिर पर धारण करने के लिए सम्मानस्वरूप
         भेंट की जाने वाली पगड़ी या छोटी दस्तार।
निशान साहिब : सिख पंथ का धार्मिक ध्वज, जो केसरिया रंग का होता है।
गुरमता : पाँच प्यारों द्वारा धार्मिक रीति से आपसी मंत्रणा द्वारा पास किया गया प्रस्ताव।
ढाडी    : गुरुद्वारे के मंच पर प्रायः खड़े होकर सारंगी और छोटे डमरू के वादन द्वारा समूह रूप में वीर रस भरा कीर्तन करनेवाला जत्था।
अरदास : ईश्वर के आगे की जानेवाली विनती।


 प्राक्कथन



अध्यात्म के जिज्ञासु पाठकों ने मेरी पहली पुस्तक ‘सरल गुरु ग्रंथ साहिब एवं एक सिख धर्म’ के प्रति जो अपार श्रद्धा प्रकट की है उससे मुझे प्रस्तुत लिखने की प्रेरणा और शक्ति मिली। सिख गुरु साहिबान के जीवन पर अब काफी कुछ लिखा गया और लिखा जा रहा है। वस्तुतः समाज के प्रति गुरु साहिबान की देन उसके उपकार इतने अधिक हैं कि उनकी महिमा का जितना भी बयान-बखान किया जाए, थोड़ा है।

प्रथम गुरु श्री गुरुनानकदेव से लेकर दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंहजी तक सभी दस गुरु साहिबान ‘एक ज्योति दस रूप’ थे। आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार के अलावा इन गुरु साहिबान ने अपनी वाणी और व्यावहारिक जीवन से मानवीय जीवन के हर पहलू को एक नई दिशा, एक नई रोशनी दी। गुरु नानक ने एक ओर शासकों द्वारा चलाई जा अत्याचार की आँधी के खिलाफ निर्भीक आवाज बुंलद की तो दूसरी ओर खुद को दलित-दमित और शोषित, लेकिन मेहनतकश, वर्ग के साथ जोड़ा। एक परिवार विशेष में जन्म लेने के कारण इनसान-इनसान के बीच भेदभाव करनेवाली और उसके अनुसार ही उसका सामाजिक दर्जा तय करनेवाली व्यवस्था को गुरु देव ने जबरदस्त चुनौती दी।

द्वितीय गुरु श्री अंगददेवजी ने गुरु मुखी लिपि विकसित की और सुस्वास्थ्य के लिए अखाड़ों का निर्माण किया। तृतीय गुरु की अमरदासजी ने परदा तथा सती प्रथा का विरोध किया। विधवाओं के पुनर्विवाह के जरिए उनके सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की और धर्म-प्रचार के कार्य में स्त्रियों की नियुक्त की। यह श्री अमरदासजी की देश और समाज को सबसे बड़ी देन थी। चतुर्थ गुरु श्री रामदासजी ने वर्तमान अमृतसर शहर को बसाकर धर्म को सामाजिक निर्माण के साथ जोड़ा। सत्य की रक्षा के लिए हुकूमत के हाथों परम शांतमय ढंग से शहीदी प्राप्त करनेवाले पंचम पातशाह, श्री गुरु अर्जन देवजी सिख धर्म के प्रथम शहीद हुए।

अमृतसर में हरिमंदिर साहिब (जो ‘स्वर्णमंदिर’ के नाम से जाना जाता है) का निर्माण और आदि ग्रंथ, जिसे आज ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम के अपार श्रद्धा के साथ नमन किया जाता है, का संकलन-संपादन पंचम गुरु जी की दो सबसे अनमोल देन हरिमंदिर के निर्माण की पहली ईंट इन्होंने एक मुसलिम संत साँई मियाँ मीर से रखवाई और इस पवित्र धार्मिक स्थल में चार द्वार रखे। ताकि खुदा के इस घर में किसी भी धर्म, जाति अथवा समुदाय का कोई शख्स किसी भी दिशा से आकर उसकी इबादत कर सके। चार वर्णों में बँटे या बाँट दिए गए समाज के एकीकरण में गुरुदेव के ये दो कार्य एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति थे।
 
पंचम पातशाह तक सिख धर्म का स्वरूप भक्ति तक सीमित था। गुरु अर्जन देवजी की शहीदी के बाद षष्ठम गुरु श्री हरिगोविन्द साहिब ने भक्ति के साथ शक्ति भी जोड़ दी और सिख के हाथ में तलवार थमाकर उसे आततायी के खिलाफ अड़ने-लड़ने का बल प्रदान किया। राजसी सत्ता व शक्ति के प्रतीक के रूप में उन्होंने हरिमंदिर साहिब के ठीक सामने अकालतख्त साहिब की स्थापना की। यहाँ वे एक शाहंशाह की तरह विराजने और लोगों के विवादों का निपटारा करते।
 
सप्तम पातशाह श्री गुरु हरिराय और अष्टम पीर श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब से होती हुई गुरु-परंपरा नौवें पातशाह श्री गुरु तेल बहादुरजी तक पहुँची। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए सन् 1675 में दिल्ली के चाँदनी चौक में अपने शीश का बलिदान नौवें नानक का मानव-समाज पर सबसे बड़ा और लासानी उपकार था। इतिहास के इस अद्वितीय बलिदान के कारण वे ‘तेग बहादुर हिंद की चादर’ कहलाए।

सन् 1699 की बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ सजाकर दशवें पातशाह श्री गुरु गोविन्द सिंहजी ने समाज की दशा और दिशा दोनों ही बदल दीं।’ ‘शुभ करमन ते कबहूँ न टरौं’ और ‘न डरौं अरि सो जब जाइ लरौं’ इस खालसा के गुरु-प्रदत्त नारे थे।


देश और दुनिया को दरपेश आज की कोई भी समस्या कोई भी मुद्दा ऐसा नहीं, जिस पर सिख गुरु  साहिबान ने दो टूक निर्देश या उपदेश न दिया हो। मानवाधिकारों की रक्षा और वर्ग-भेद रहित समाज की स्थापना की बात करें तो गुरु नानक ने फरमाया-‘नानक उत्तमु नीचु न कोई।’ सत्रहवीं शताब्दी में ‘मानस की जात सभै एकै पहिचानबो’ का नारा देकर दशम पातशाह ने इसे मानवाधिकारवादी अभियान और आंदोलन के आगे बढ़ाया। आज के बहुचर्चित दलित-उत्थान के मसले पर आएँ तो गरीबों के शोषक पूँजीपति मलिक भागो का अतिथ्य ठुकराकर नानकजी ने एक गरीब-दलित भाई लालो की सूखी रोटी स्वीकार की, उसके झोंपड़े में निवास किया और फरमाया कि दलितों की सार-सँभाल करने वालों पर परमात्मा की सदा कृपादृष्टि रहती है। स्त्री की गरिमा की रक्षा का सवाल आया तो नानकजी ने स्त्रियों की निंदा करने वालों को फटकार लगाते हुए कहा ‘सो क्यों मंदा आखीऐ जित जमै राजान’ यानी महान् प्रतापी राजाओं को जन्म देनेवाली स्त्री को हेय कहना या समझना अनुचित है। दहेज की लानत से बचने के लिए बच्चियों को जनमते ही मार देने या उनकी भ्रूण-हत्या करने की घिनौनी प्रथा आज दुनिया में स्त्री-हितों के प्रति निष्ठा रखनेवालों के लिए एक गंभीर चिंता और चुनौती बनी हुई है। सिख गुरुओंने ‘कुड़ीमार’ लोगों की न केवल कड़ी निंदा की, बल्कि अपने अनुयायियों से ऐसे लोगों के साथ रोटी-बेटी का कोई रिश्ता न रखने की ताकीद की। ‘घाल खाइ किछु हथहु देइ’ कहकर गुरु नानक ने मेहनत की कमाई के जरिए आत्मनिर्भरता और वंचितों की सार-संभाल पर जोर दिया। पर्यावरण रक्षा के नाम पर आज जिस वायु, जल और धरती को बचाने के विश्वव्यापी आंदोलन व अभियान चल रहे हैं। उनके संरक्षण और सम्मान के लिए गुरु साहिबान ने ‘पवणु गुरु पाणी और धरति महतु’ फरमाकर पवन को गुरु का, पानी को पिता का और धरती माता का उदात्त दर्जा दिया।

सिख गुरु साहिबान ने ब्राह्मणवादी चिन्हों, प्रतीकों और पर्यावरण परंपराओं से हटकर अपने शिष्यों को एक नया, आधुनिक और मौलिक स्वरूप प्रदान किया। लेकिन जब वक्ती हुकूमत ने हिंदू धर्म के इन प्रतीकों को मिटाने की कोशिश की तो उन्हें बचाने के लिए गुरु साहिबान ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। जैसे जिस जनेउ को प्रथम गुरु नानक ने पहनने से इनकार किया उसी जनेऊ की रक्षा कि लिए नौवें नानक गुरु तेग बहादुरजी ने अपना शीश तक कुरबान कर दिया। इस कुरबानी के पीछे उद्देश्य एक ही था-व्यक्ति की धार्मिक आजादी और पहचान की रक्षा। इसी धार्मिक आजादी के लिए गुरु गोविदसिंहजी की पूरी चार पीढ़ियाँ कुर्बान हो गईं—सबसे पहले परदादा गुरु अर्जनदेवजी, फिर पिता गुरु तेग बहादुरजी, उनके बाद गुरु गोविंदसिंहजी के चार साहिबजादे और अंततः गुरुदेव स्वयं। जाहिर है, पीढ़ी-दर-पीढ़ी बलिदान का ऐसा अनुपम उदाहरण इतिहास में अन्यत्र दुर्लभ है।

गुरु साहिबान के इसी असाधारण, उदात्त और आध्यात्मिक व्यक्तित्व से रूबरू करवाती है यह कृति- ‘सिख गुरु गाथा’। कृति में मैंने गुरु साहिबान के जीवन से जुड़ी और मानव-मन को झकझोरनेवाली लगभग सभी प्रमुख घटनाओं और प्रसंगों को सहज व संक्षेप में समेटने का प्रयास किया है। इससे सुधी पाठकों को दस गुरु साहिबान के असाधारण और उदत्त व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जानने-समझने में मदद मिलेगी। अतः इन्हीं शब्दों के साथ ‘सिख गुरु गाथा’ हिन्दी के गुणी पाठकों की प्रतिष्ठा में प्रस्तुत हैं।

 -जगजीत सिंह

59 कैलाश हिल्स,
नई दिल्ली-110065

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai